Sunday, January 22, 2012

गुरु चरण




गुरु चरण जहाँ पड़े वो माटी पावन जान
जहाँ गुरु दर्शन भये वो सच्चा तीरथ स्थान

लोग कई बार असमंजस में पड़ जाते है कि इन टीचर्स को आखिर मिलता क्या है? ये क्यों जगह जगह घूम लोगो को सुदर्शन क्रिया सिखाते है, सत्संग कराते है, इंट्रो-टॉक देते है? कई लोग तो ये भी सोचते है कि हमें ज़रूर भारी कमीशन मिलता होगा। भाई कमीशन तो मिलता है और वो भी बड़ा भारी! कोई आज के ज़माने में कोड़ियो के भाव तृप्ति बेचे तो कोई क्यों न ले? संतुष्टि का कमीशन मिलता है और उसपर कृपा का बोनस भी। जब चलते है तो लगता है कि ये पैर अपने नहीं नारायण के है। जब बोलते है तो लगता है जाने कहा से रस फूट-फूट कर निकल रहा है। अगर अपने आप से प्रेम में पड़ना है तो किसी को सुदर्शन-क्रिया भेट करके देखो, अपने होने पर गर्व होने लगेगा। ये रस जितना बांटो बढ़ता है। जितना प्रेम दो, हज़ार गुना होकर वापस आता है। जीना क्या है धीरे धीरे समझ आ रहा है। देने का जो सुख है वो लेने से कितना बड़ा है। जय गुरु देव!

Thursday, April 28, 2011

आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे कुछ टटोल रहा था

आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे
कुछ टटोल रहा था
कंप्यूटर पर अपना पुराना नाम लिखा और सर्च किया

कपडे बिखेर कर देखा
किताबे कुछ उलटी कुछ पलटी
कुछ किताबो में निशाँ तो थे पर वो नहीं था जो मै ढूढ़ रहा था

टेबल के किनारे कुछ लव्ज़ चिपके थे
कमरे के कोने वाली मकड़ी को कुछ याद था
पर वो व्यस्त थी जाला बुनने में
वो जाने क्यों बुनती रहती है सालों से

कुछ पुरानी तस्वीरो में ताज़ा यादे थी
उनके साथ सो जाने का मन किया

आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे
कुछ टटोल रहा था......

Monday, February 21, 2011

कमी नहीं है..... बस तू नहीं है....




कही कही से ये पैगाम अक्सर आता है
मेरी आँखों के किनारे नम करके
मेरे सीने को सुकूं दे जाता है....

कही कही से ये पैगाम अक्सर आता है...

सुना है तू लोगो के दिलो में बसने लगा है
उनके गम बांटता है, उनके संग हंसने लगा है...
गाँव में तेरी अम्मी का बड़ा नाम है...
गरीब बुढ़िया को अब सरपंच का भी सलाम है...

बस तेरी याद बहुत आती है...
कही तेरे काम में आड़े न आ जाऊं ये सोचकर
तेरी माँ चुप रह जाती है...

कही कही से ये पैगाम अक्सर आता है
मेरी आँखों के किनारे नम करके
मेरे सीने को सुकूं दे जाता है....

सुना है तू देश-देश घूमता है
बड़े-बड़े लोगो से मिलता है
अच्छा है... बहुत उम्दा है...

तेरे भेजे हुए खूब सारे पैसे
हर महीने मिल जाते है
पर सोचती हूँ काश
तेरे साथ की एक छत भी मिल पाती...
कमी नहीं है.....
बस तू नहीं है....

कही कही से ये पैगाम अक्सर आता है
मेरी आँखों के किनारे नम करके
मेरे सीने को सुकूं दे जाता है....

Monday, February 14, 2011

तन झरता है क्षण क्षण कण कण




तन झरता है
क्षण क्षण कण कण
मन फूले है उल्लास में
मै पूछू अपनी वसुधा से
क्या रखा तन की प्यास में...

तन एक छलावा
मिट जाने वाला सपनो का पुतला है
तू सपनो को सच मान सुखो का पीछा करता निकला है..
मत भूल कि राही राह नहीं ये तो घनश्याम कि माया है..
पञ्च-इन्द्र के बादल ने तुझसे तेरा स्वरुप छिपाया है...

Thursday, November 11, 2010

Doing Nothing.. Exactly Nothing

Just another day, planning for a wonderful future. I will do this, that, everything. I will learn flute and then play it in paf. May be I should start preparing for CAT. I should write songs and may be I should again start dramatics. And then suddenly there is this moment when you encounter a high scorer of you batch who is having his intern in France and your mind flips over and says may be I should have given more attention to my studies. Who knows I could have been a topper...

And then I thought of listening Pt. Hari prasad chaurasia on You Tube. What a magical flute. Raag durga. Suddenly everything stopped and I closed my eyes. Everything empty yet so blissful. I didn't want anything. No comparisons, No plans, just an emptiness. And I said to myself- That it is! That is what I was searching for behind all my plans: the bliss, the satisfaction. I felt as if I have read the "Alchemist" again. The treasure we have being searching outside and finally find it at our own doorsteps. But may be the tour to Egypt was needed to know this. Its the nothingness which is mother of everything which is substantial. Its the stillness all of our creativity comes from. Have you ever thought of doing something just for the sake of doing it? And yet giving your 100%. What was the last time your mind was 100% here and now? Neither in the future nor in the past. Exactly here and now. Right now. This moment.Still and calm.

Wednesday, September 15, 2010

तेरे सात दिए

हवा, चल ज़रा
मेरा आंसू एक सुखा दे
पथराई सी आँखों में प्रेम के
दीपक सात बुझा दे

वो सात दिए जो सात दिनों में
तूने मन में जलाए
वो सात दिए जो सात क्षणों में
तूने प्रिये भुलाए

वो दीपक तेरी यादो के
जो सात रंग के सपने थे
जो पल मेहमान थे जीवन में
वो पल काहे के अपने थे

पर हाँ आँखे मूंदू तो अब भी
तुम्ही दिखाई देती हो
जब चलूँ अकेला उन सड़को पर
तुम्ही सुनाई देती हो...

चलने दे मुझे, है काम बड़े
जो राह में मुझको करने है
तेरी याद भी मेरा क्या लेगी
बस दो नैना ही भरने है...

पर फिर भी याद रहेंगे मुझको..... तेरे नैना, तेरे नैना, तेरे नैना रे....



Tuesday, September 14, 2010

Desires make you Handicapped!


What is desire? A search of happiness in future. A concept that mind will be happy sometime when something will happen.Or wanting a good experience to come back to you.You may want a person, an object or a situation, it doesn't really matter.After all you are craving for an object of sense. An object which is supposed to raise few goody emotions in your mind and make your life so called happy. Look back once and see how many times have you desired something immensely? You run after an object which seems to be promising. But has anything ever completed its promise? If you get the thing and your mind becomes happy and peaceful for a moment or may be for a little longer time. What happens then? The mind again starts its wheel of craving and starts asking for something else. After every desire you are the same. If you see closely many botheration in your life right now are because of some fulfilled desires of the past. You wanted to get a girlfriend and now you want to get rid of your relationship.Feverish mind can never experience happiness because its stuck with a thing. Desires don't let us be what we are and don't let us do what we really want. They bind the mind, restrict its vastness and don't allow intution to happen. In feverishness we forget all the things we have. We stop enjoying this present moment, everything which divine is offering us. The learning stops and blossoming stops. Ask yourself do you really want it? What will change in your life if you have it? Do you want to live a life craving for things one after another. When will you get time to love this nature my dear?
And if we are stuck with a craving even this beautiful knowledge of liberation becomes a crutch for us. Because desires have made you handicapped. Unable to walk and see the beauties this universe has to offer you!
Stop and see what is that which you really want? Desire something so that no other desires need to arise after its fulfillment.

"Its fine if you have desires but don't let desires have you" -sri sri.

Jai Guru Dev! :)