
तन झरता है
क्षण क्षण कण कण
मन फूले है उल्लास में
मै पूछू अपनी वसुधा से
क्या रखा तन की प्यास में...
तन एक छलावा
मिट जाने वाला सपनो का पुतला है
तू सपनो को सच मान सुखो का पीछा करता निकला है..
मत भूल कि राही राह नहीं ये तो घनश्याम कि माया है..
पञ्च-इन्द्र के बादल ने तुझसे तेरा स्वरुप छिपाया है...
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