Sunday, October 12, 2008

पन्ने

कई दिनों बाद
आज मै लिखने बैठा हूँ
लगता है किसी ने तरल कर दिया है
मेरे मन की सूखी स्याही को

और अब मेरी खुशियाँ भी
तरल हो चुकी है
मेरी भावनाए मेरी उंगलियों के छोरो से
बह रही है
और सोख ली जाती है
जीवन के कोरे कागज़ पर |


मैंने अधिकार दिया
दूसरो को रंगने का
अपने जीवन के कागज़

और देखो उन्होंने क्या कर दिया-
हर पन्ने पर लाल छींटे है
मेरी इच्छाओ के
कुछ लकीरे भी है जो
भावनाओं के मरने के बाद
आस-पास खीच दी गई....

कई दिनों बाद
आज मै लिखने बैठा हूँ...