मै छोड चुका
तो छोड चुका
प्रिये प्रेम के इस पथ पर
हमको चलना था साथ मगर
हो साथ तेरा हो साथ मेरा
ये राहे साथ नही देती
तन्हा राहो से दर्द भरा
संबंध निभाने से अच्छा
मै तोड चुका
तो तोड चुका
जैसे-जैसे सांसे घटती
ये राहे बंटती जाती है
नाकाम मेरी नज़रे होती
दूरी यूं बढती जाती है
अब किसे याद कि
कभी तुम्हारा
हाथ भी थामा था हमने
वादो के शव पर आस बहा
मुंह मोड चुका
तो मोड चुका
1 comment:
बहुत ही सुंदर. :)
प्रेम नहीं स्वीकारा लेकिन कविता तुमको सिखा गयी.
क्या अचरज जो आग विरह की कुंदन तुमको बना गयी.
ऐसा तड़पन तो अच्छा है, जो भीतर तक झकझोर चुका
तु छोड़ चुका, सो छोड़ चुका.
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