Saturday, January 10, 2009

मै छोड चुका

मै छोड चुका
तो छोड चुका

प्रिये प्रेम के इस पथ पर
हमको चलना था साथ मगर
हो साथ तेरा हो साथ मेरा
ये राहे साथ नही देती

तन्हा राहो से दर्द भरा
संबंध निभाने से अच्छा

मै तोड चुका
तो तोड चुका

जैसे-जैसे सांसे घटती
ये राहे बंटती जाती है
नाकाम मेरी नज़रे होती
दूरी यूं बढती जाती है

अब किसे याद कि
कभी तुम्हारा
हाथ भी थामा था हमने

वादो के शव पर आस बहा
मुंह मोड चुका
तो मोड चुका

1 comment:

Vikash said...

बहुत ही सुंदर. :)

प्रेम नहीं स्वीकारा लेकिन कविता तुमको सिखा गयी.
क्या अचरज जो आग विरह की कुंदन तुमको बना गयी.

ऐसा तड़पन तो अच्छा है, जो भीतर तक झकझोर चुका
तु छोड़ चुका, सो छोड़ चुका.