आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे
कुछ टटोल रहा था
कंप्यूटर पर अपना पुराना नाम लिखा और सर्च किया
कपडे बिखेर कर देखा
किताबे कुछ उलटी कुछ पलटी
कुछ किताबो में निशाँ तो थे पर वो नहीं था जो मै ढूढ़ रहा था
टेबल के किनारे कुछ लव्ज़ चिपके थे
कमरे के कोने वाली मकड़ी को कुछ याद था
पर वो व्यस्त थी जाला बुनने में
वो जाने क्यों बुनती रहती है सालों से
कुछ पुरानी तस्वीरो में ताज़ा यादे थी
उनके साथ सो जाने का मन किया
आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे
कुछ टटोल रहा था......
Thursday, April 28, 2011
Monday, February 21, 2011
कमी नहीं है..... बस तू नहीं है....

कही कही से ये पैगाम अक्सर आता है
मेरी आँखों के किनारे नम करके
मेरे सीने को सुकूं दे जाता है....
कही कही से ये पैगाम अक्सर आता है...
सुना है तू लोगो के दिलो में बसने लगा है
उनके गम बांटता है, उनके संग हंसने लगा है...
गाँव में तेरी अम्मी का बड़ा नाम है...
गरीब बुढ़िया को अब सरपंच का भी सलाम है...
बस तेरी याद बहुत आती है...
कही तेरे काम में आड़े न आ जाऊं ये सोचकर
तेरी माँ चुप रह जाती है...
कही कही से ये पैगाम अक्सर आता है
मेरी आँखों के किनारे नम करके
मेरे सीने को सुकूं दे जाता है....
सुना है तू देश-देश घूमता है
बड़े-बड़े लोगो से मिलता है
अच्छा है... बहुत उम्दा है...
तेरे भेजे हुए खूब सारे पैसे
हर महीने मिल जाते है
पर सोचती हूँ काश
तेरे साथ की एक छत भी मिल पाती...
कमी नहीं है.....
बस तू नहीं है....
कही कही से ये पैगाम अक्सर आता है
मेरी आँखों के किनारे नम करके
मेरे सीने को सुकूं दे जाता है....
Monday, February 14, 2011
तन झरता है क्षण क्षण कण कण
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