धूप में किसी पेड की
छाया को कहते मित्रता,
ईश के हाथो बनी
काया को कहते मित्रता ||
ग़र निराशा आ भी जाए
मित्रता अवलम्ब है
बोझ ले विश्वास पर
यह वह अटल स्तम्भ है ||
स्वार्थ को जाने नही
वह भावना है मित्रता
मित्र के हर स्वप्न की
एक कामना है मित्रता ||
मरीचिका में सत्य का
दर्पन दिखा दे मित्रता
निश्वास में निर्वात में
कम्पन जग दे मित्रता ||
एक अजब संबंध है
एक धीरता है मित्रता,
हास्य से सींची हुई
गम्भीरता है मित्रता ||
ग़र कदम थकते कभी तो
मित्रता तो पास है,
जीत का विश्वास भर दे
एक अनूठी आस है ||
हर ख़ुशी के ओष्ठ पर
जो गीत वह है मित्रता,
प्रेम के सुर में ढला
संगीत ऐसी मित्रता ||
सांस जो रूकती कभी तो
दम अगर साहस भरे ,
हार की उम्मीद हो और
सच हो सपनो से परे,
हाथ थामे जीत का
विश्वास देगी मित्रता
अपने ही सामर्थ्य तक
हर श्वास देगी मित्रता ||
ग़र कही इतना अनोखा
प्रेम मिल जाये कभी,
भूल कर भी खो ना देना
साकार ऐसी मित्रता ||
5 comments:
बहुत सही लिख लेते हो .... "काव्य-संध्या" में प्रथम पुरस्कार के लिए बधाई हो !!
very nice.......write more dear....
u rock ashish....god poem hai yaar mitrata wali.....gr88888
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plz help me i want it
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