Sunday, November 23, 2008

काश

काश प्रिये मेरी धड़कन को
अपने मन से सुन पाती तुम
काश प्रिये गीतों को मेरे
सांसों में अपनी बुन पाती तुम


काश प्रिये तुम मुझसे मुझतक
और मेरे अंतस में रहती
मुझपर बस अधिकार तुम्हारा
काश सदा तुम मुझसे कहती

काश तेरे कोमल हाथो को
हाथो में अपने ले सकता
और अगर ये हो सपनो में
काश और सपने ले सकता

काश कभी तुमसे कह पाता
कितना गहरा प्यार हमारा
एक इबादत तुमसे की है
कभी न होगा प्यार दोबारा

काश प्रिये इस दीवाने को
अपना साथी चुन पाती तुम
काश प्रिये मेरी धड़कन को
अपने मन से सुन पाती तुम

5 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अपने मनोभावो को बहुत सुन्दर ढंग से पेश किया है।बधाई।

Rajdeep said...

chal mujhe hindi likhna naji aata lekin....
poem sexy tha...

Unknown said...

धन्यवाद परमजीत जी ।

sumit somani said...

acchi hai

padya- said...

aashish maine aapki do kavitain padhi main chodd chuka aur kash dono hi bahut saral shabdon main apna arth sarthak karti hain parantu dono ke bahvon main ek virodhabhas ki jhalak mil rahi hai.....aakhirkar aap dono main se kisne kise ditch maara