जाने क्यो वो हर चीज़ जिसे मै आज तक सच समझता था धुंधलाई सी नज़र आ रही है... मेरी दुनिया तो यही थी न...फिर आज क्यो मुझे आकाश को देखने की ज़रूरत पड़ती है... क्यो आज वो दुनिया जिसे मै जीतने निकला था पाने काबिल नही रही... क्यो क्षितिज पर तनी सीमाए मुझे छोटी लगती है... दुनिया इतनी छोटी तो कभी नही थी...
फिर लगा शायद मेरा उत्तर सापेक्षता हो... मतलब कि everything is relative...
पहले कभी इस दुनिया से बड़ा कुछ देखा ही नही था... या यूँ कह लो कि पहले कभी इस दुनिया के छुटपन का ज्ञान नही था... सबकुछ कितने छोटे खांचो में समा जाने लायक...
भावनाओं के खांचे, प्रभावों के खांचे, अंहकार का खांचा ऐसे ही कुछ चंद गिनती के खांचे.. कुछ खांचो में निर्वात भी पलता था..शायद ये सबसे गहरे खांचे थे... मन एक खांचे से दूसरे खांचे में कूदता रहता है... और हम इसे जटिल जीवन कहते है... इन सभी खांचो में हम कही नही होते ... ऐ सांचे हमारी दुनिया होते है.... तो मतलब हम कभी अपने आप में होते ही नही है... शायद मै हूँ... इसका भान भी विरले होता है...
अतृप्त व्याकुल मन बस भटकता रहता है... खांचे बदलता रहता है... और हम इसे जटिल जीवन कहते है...
and then comes the famous phrase "happiness can only be pursued"...
पर वे कुछ खाली लम्हे जो हमें निर्वात के खांचे में ले जाते है सबसे खूबसूरत होते है... क्योकि तब अनजाने ही एहसास हो जाता है कि happiness need not be pursued its your self.... its the Dimension of your existence...
इन सारे खांचो में प्यार का कोई खांचा नही होता... क्योकि प्रेम से सबकुछ बना है.... हम हमारा मन और हाँ ये सरे खांचे भी प्रेम का रूप है... अच्छा या बुरा... beautiful or distorted... but it is love...
अपने अन्दर के एहसास का वो एक क्षण तुम्हे अनंत से मिलाता है.... और तब मन सच कि समाओ के परे कुछ खोजने लगता है....
और यही खोज हमें एहसास दिलाती है ........LIFE IS SO BEAUTIFUL...