Wednesday, October 17, 2007

अन्तिम इच्छा

प्रियतम, अब मरने वाला हूँ
कुछ बाते तो अब कर लो
बुझती आंखें ,रूकती साँसे
लेकिन बाहों में भर लो |

ह्रदय के स्पंद गिरे जब
मन को ऐसे बहलाना
एक हथेली सिर रख लेना
एक हथेली सहलाना |

जैसे-जैसे टूटे साँसे
तेरी साँसों की गूँज सुनू
फिर एक मिलन का स्वप्न बुनू ,और
नव-जीवन की आस करूं|

रुन्धती जाये आवाज़ मेरी
तब कानो में वे शब्द कहो
मरने में मुझको कष्ट ना हो
ऐसा संगीत निशब्द कहो |

अधरों को अधरों से अन्तिम
कुछ बाते अब कह लेने दो
सारा जीवन तरसा हूँ मैं
अब भावो को बह लेने दो |

जब गिर जाऊं चलते-चलते
तो झुकना मेरे सहारे को
माना मैं उठ नही पाऊंगा
पर रुकना अंत इशारे को |

जब मूंदू मैं अपनी आँखे
तेरे चेहरे को देख मरूँ
फिर से देखू इस चेहरे को
मन मे अन्तिम एक आस करूं |

Monday, October 15, 2007

मैं मूक कवि



मैं मूक कवि हूँ ,मूक कवि
मैं कह नही सकता भावो को
इसलिये उकेरता रहता हूँ
कागज़ पर डगमग नावों को ||

मैं सुन सकता हूँ ,सुनता हूँ
तरह-तरह की बातो को
कितने पंछी के कलरव को
आंधी मे डालो-पातो को||

चुपचाप मैं बस सुनता रहता
जो जगती मुझको सुनाती है
कभी,वीणा की मधुर तान
कभी,घृणित शोर बन जाती है||

जितने है मुँह उतनी बाते
एक अवसर आने की देरी
और अवसर आते ही देखो
कैसे बजती है रणभेरी ||

एक प्रतिस्पर्धा,समर,युद्ध
छिड़ जाता है लोगो मैं तब
कोई कितना शोर मचाता है
कोई कितनी बात बनाता है||

कैसी है ये दुनिया तेरी
जीते नही जीने देती है
करती रुख अँधेरी गलियाँ
पीते नही पीने देती है ||

दो ह्रदयों का मेल अगर हो
हानि बता जग तेरी क्या है?
क्यों बांटे है तू ह्रदयों को
बांटे ये बहुतेरी क्या है?

चटखारे लेकर पर-पीड़ा
सुनी -सुनाई जाती है
जिन बातो को ढकना हो
वाही बात बताई जाती है||

"कैसा जीवन जीते है वे
जिनको वाणी-वरदान मिल
उनसे तो अच्छा मैं गूंगा
जिसको गूंगापन दान मिला "



||आशीष ||