प्रियतम, अब मरने वाला हूँ
कुछ बाते तो अब कर लो
बुझती आंखें ,रूकती साँसे
लेकिन बाहों में भर लो |
ह्रदय के स्पंद गिरे जब
मन को ऐसे बहलाना
एक हथेली सिर रख लेना
एक हथेली सहलाना |
जैसे-जैसे टूटे साँसे
तेरी साँसों की गूँज सुनू
फिर एक मिलन का स्वप्न बुनू ,और
नव-जीवन की आस करूं|
रुन्धती जाये आवाज़ मेरी
तब कानो में वे शब्द कहो
मरने में मुझको कष्ट ना हो
ऐसा संगीत निशब्द कहो |
अधरों को अधरों से अन्तिम
कुछ बाते अब कह लेने दो
सारा जीवन तरसा हूँ मैं
अब भावो को बह लेने दो |
जब गिर जाऊं चलते-चलते
तो झुकना मेरे सहारे को
माना मैं उठ नही पाऊंगा
पर रुकना अंत इशारे को |
जब मूंदू मैं अपनी आँखे
तेरे चेहरे को देख मरूँ
फिर से देखू इस चेहरे को
मन मे अन्तिम एक आस करूं |
Wednesday, October 17, 2007
Monday, October 15, 2007
मैं मूक कवि
मैं मूक कवि हूँ ,मूक कवि
मैं कह नही सकता भावो को
इसलिये उकेरता रहता हूँ
कागज़ पर डगमग नावों को ||
मैं सुन सकता हूँ ,सुनता हूँ
तरह-तरह की बातो को
कितने पंछी के कलरव को
आंधी मे डालो-पातो को||
चुपचाप मैं बस सुनता रहता
जो जगती मुझको सुनाती है
कभी,वीणा की मधुर तान
कभी,घृणित शोर बन जाती है||
जितने है मुँह उतनी बाते
एक अवसर आने की देरी
और अवसर आते ही देखो
कैसे बजती है रणभेरी ||
एक प्रतिस्पर्धा,समर,युद्ध
छिड़ जाता है लोगो मैं तब
कोई कितना शोर मचाता है
कोई कितनी बात बनाता है||
कैसी है ये दुनिया तेरी
जीते नही जीने देती है
करती रुख अँधेरी गलियाँ
पीते नही पीने देती है ||
दो ह्रदयों का मेल अगर हो
हानि बता जग तेरी क्या है?
क्यों बांटे है तू ह्रदयों को
बांटे ये बहुतेरी क्या है?
चटखारे लेकर पर-पीड़ा
सुनी -सुनाई जाती है
जिन बातो को ढकना हो
वाही बात बताई जाती है||
"कैसा जीवन जीते है वे
जिनको वाणी-वरदान मिल
उनसे तो अच्छा मैं गूंगा
जिसको गूंगापन दान मिला "
||आशीष ||
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