Monday, July 21, 2008

एक नया सूरज

घन तिमिर से घिरि
इस नीरस धरा पर
अब नया सूरज उगाना चाहिए

आंधीयों से जूझती एक
प्राण ज्योति
इसको बुझने से
बचाना चाहिए

क्यों तिमिर बाहर
जो अन्दर
रोशनी इतनी सघन है
शीत की लहरें है हिम सी
क्यों ये फिर जलता बदन है |

क्या किरण मेरे ही अन्दर
दबी सी मर जायेगी
चेष्टा इसकी कि मिट जाए तिमिर
मिट जायेगी |

या मेरे अंतर की ज्वाला
देश को झुलसाएगी
जब तलक रोशन ना युग हो
तब तलग तड़पायेगी |

क्रांति को जन्म देने को
न शक्ति चाहिए
क्रांति मांगे समर्पण
देश भक्ति चाहिए

मै नहीं कहता कि तुम
भगवान् को ललकार दो
ना मेरी इच्छा कि सारे
तंत्र को धिक्कार दो |

तार है सूने पड़े सच्चाई के
झंकार दो
एक मानव पल रहा अंतस में है
पुकार दो |

आज तक जो स्वप्न
हम सबके ह्रदय में है पला
उस सपन को आज का
सच बनाना चाहिए

अब नया सूरज उगाना चाहिए ||

Sunday, July 20, 2008

ओ रे नीरे !

ओ रे नीरे !
आज मचल जा कि
अब अंतस में तेरे
भाव की लहरें उठेंगी
स्वप्न के संचार होंगे

और इस नीरस धरा पर
पुष्प हर रंग का खिलेगा

ना थी मूरत
था सनाटा
आज बज जाए मंजीरे
ओ रे नीरे !

स्वप्न की दुनिया का
सच में
आज मन
संचार होगा

आज सोयेगा अँधेरा
प्रेम का उजियार होगा

आज सूखे जलधरो से
भी यहाँ पानी गिरेगा

झूम तू खुशियों में लेकिन
थोडा धीरे
ओ रे नीरे !

पतझरो में झर गया
हर पात वृक्षों से मगर
अब वास आया है वसन्तो का
अभी न शोक कर

कि अब हवाए
शीत की लहरों को अपने संग लिए
फैला रही है दूर तक सुरभि

बदन में
उठ रहे कम्पन है
जैसे ही छुआ इस
वात ने है

एक उत्सव जग में है
और एक मेरे मन में है
एक उत्सव कर रही है
पवन ये
मुझको घेरे
ओ रे नीरे !

मन ही केवल खुश नहीं है
देखो-देखो इन विहग के कलरवो को
आज ये आकाश सारा
नाप देंगे

देखो पातो की विवशता
बन्धनों में बंद है
पर आज फिर भी
चेष्टा उड़ने की है
सो मचलते है
संग हवाओं के |

लुभाते मन को मेरे
ओ रे नीरे !!

Saturday, July 19, 2008

उन्माद

मन मे एक उन्माद है
कर दिखा , कुछ कर दिखा
बज रहे सौ नाद है
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||

स्वप्न ले आंखो मे चल
मन भले ही हो विह्वल
दूरियों को दूर से ही देखकर
तू प्रण ये कर
की, भाग्य भी आये
अगर
और जग से हो तेरा समर
तब वक़्त की जंजीर को तोड़े हुए
आगे तू बढ़ |
और मृत्यु से आँखे मिलकर
दे उसे सच aये बता
कल है मेरा ,कल है मेरा
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||

चाहे ये जग तुझपर हंसा
चाहे खुदा भी फ़िर गया
चाहे तेरी राहो के संबल
बन गए पत्थर , मगर
न हार को स्वीकार कर
मत भाग्य का सतकार कर
निश्चय बना अतल तेरा
और जीत को पुकार दे
ये तन ये मन सारा जीवन
हर एक साँस वार दे
जीत जा , जगती को उसके
सत्य का दर्पण बता
कुछ कर दिखा, कुछ कर दिखा ||

वह कठोर तप तू कर
कि ईश को भी डर लगे
देना पड़े उसको वहि
जो मांग तेरा मन करे
तेरे परिष्रम से स्वयं
ष्रम को पसीना आएगा
तब देखना उस दिन तू सारा
जग विजय हो जायेगा
की पर्वतो को चीरकर
आगे तू बढ़, कुछ कर गुज़र
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||

राहो में चाहे अनगिनत कांटे मिले
पैरो तले
मन में चाहे चुभते हजारो
रक्त की बूँदें गिरे
तब एक दुनिया डूब जाने दे
मगर तू हार ना
कर दे विवश जगती भले
मत हार को स्वीकारना

प्राणो की ज्योति की भले
अंतिम किरण देनी पड़े
देना पड़े तुझको ये जीवन
शर ये मन देना पड़े |

पीछे न हटना एक पग भी
अग्रसर रहना सदा
कुछ कर दिखा, कुछ कर दिखा ||