Thursday, April 28, 2011

आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे कुछ टटोल रहा था

आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे
कुछ टटोल रहा था
कंप्यूटर पर अपना पुराना नाम लिखा और सर्च किया

कपडे बिखेर कर देखा
किताबे कुछ उलटी कुछ पलटी
कुछ किताबो में निशाँ तो थे पर वो नहीं था जो मै ढूढ़ रहा था

टेबल के किनारे कुछ लव्ज़ चिपके थे
कमरे के कोने वाली मकड़ी को कुछ याद था
पर वो व्यस्त थी जाला बुनने में
वो जाने क्यों बुनती रहती है सालों से

कुछ पुरानी तस्वीरो में ताज़ा यादे थी
उनके साथ सो जाने का मन किया

आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे
कुछ टटोल रहा था......