आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे
कुछ टटोल रहा था
कंप्यूटर पर अपना पुराना नाम लिखा और सर्च किया
कपडे बिखेर कर देखा
किताबे कुछ उलटी कुछ पलटी
कुछ किताबो में निशाँ तो थे पर वो नहीं था जो मै ढूढ़ रहा था
टेबल के किनारे कुछ लव्ज़ चिपके थे
कमरे के कोने वाली मकड़ी को कुछ याद था
पर वो व्यस्त थी जाला बुनने में
वो जाने क्यों बुनती रहती है सालों से
कुछ पुरानी तस्वीरो में ताज़ा यादे थी
उनके साथ सो जाने का मन किया
आज सुबह से ही मै अपने पलंग के नीचे
कुछ टटोल रहा था......
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