Tuesday, December 9, 2008

जब मै तुम्हारे साथ होता हूँ

जब मै लोगो के साथ होता हूँ
तब कही बन्द डिब्बे मे
मंजीरे शोर मचाते रहते है
और लोग कहते है
मै बहुत बोलता हूँ

जब मै तुम्हारे साथ होता हूँ
तब हवाओं मे भी
संगीत होता है
और तुम कहती हो
मै बहुत चुप रहता हूँ

इंतज़ार

मै तब भी इंतज़ार करता था
मै अब भी इंतज़ार करता हूं

कभी आसमान को देखता हूं
कभी पास खडी इमारतो को
कभी फ़ोन कान के पास रख
अभिनय किया करता हूं

फिर बार-बार सबसे नज़रे बचाकर
तुम्हारे घर को देखता हूं
कि अब
शायद अब तुम बाहर आओ

मै रोज़ आता हूं
सिर्फ़ तुम्हे देखने

मै तब भी इंतज़ार करता था
मै अब भी इंतज़ार करता हूं

Sunday, November 23, 2008

रंग मेरे जीवन के

लोग मुझे कवि समझते है... मेरी कविताए पढ़ते है तारीफे करते है...और कई बार पूछते भी है क्या सोचा ? कैसे लिखा ? कई बार तो यही सवाल वे लोग पूछते है जो मेरी प्रेरणाओं का हिस्सा होते है या फ़िर वे लोग जिनके लिए मै लिखा करता हूँ...
आज मन है कहने का, सो जवाब सुन लिजिये... दरअसल मै कवि नही चित्रकार हूँ...

बरसो पहले मेरे पिता ने मुझे कुछ रंग लाकर दिए और कहा की ये सात रंग काफी है... रंगते रहो | पर क्या रंगना है उन्होंने बताया ही नही | मै फर्श रंगने लगा, दीवारे रंगने लगा, अलमारी के किवाड़, घर का दरवाजा, जगह-जगह अपनी कलाकारी के निशान छोड़ दिए | पिताजी खूब हँसे, न गुस्सा किया...न डाटा | बस कहा की हमेशा इसी तरह अपनी और अपनों जिंदगियां रंगते रहना| और उसके लिए जो रंग चाहिए वो तुम्हारे मन में छुपे है... ढूंढ सको तो ढूंढ लो |
मै आज भी ढूंढ रहा हूँ|
जब भी कोई रंग मिलता है एक नयी तस्वीर बना लेता हूँ| उससे पहले की वो रंग गायब हो जाए वक्त के नाक-नक्श चितेर देता हूँ| अजीब बात तो तब हुई जब उम्र के एक नये पड़ाव ने मुझे एक नया रंग दिया.... लाल रंग| मैंने सोचा कि चलो प्यार की तस्वीर बनाए| मैंने रंग लिया और शुरू हो गया..... मै तो बस एक ज़रिया था... दरअसल मै कुछ बना भी नही रहा था... रंग को जैसे ढलना था वो अपने आप ढल रहा था...
मै ग़लत लकीर खीचता तो मिट जाती | सही लकीर अपने आप खिच जाती | रंग अपने आप फैलते सिमटते जा रहे थे |
अचानक मैंने अपने आप से पूछा क्या प्यार की इतनी खूसूरत आँखे होती है ? क्या प्यार इतना सुंदर होता है...मेरे सामने एक अनजान सी तस्वीर उभर आई | प्यार की वो तस्वीर जिससे मुझे प्यार हो गया| और इस एक तस्वीर ने मुझे जाने कितनी कविताए दी है...

कितना अजीब है... एक अनजान सी छवि आती है और मेरे हर शब्द को प्रेरणा मिल जाती है....अब तो जिन्दगी भी सुंदर कविता लगने लगी है | मन करता है कि इन्ही सात रंगों से हमारा मिलन बुन दूँ |

अब शायद सात रंगों के नाम भी जानता हूँ ..... और वो नाम मेरी स्याही तुम्हे बता चुकी है...

काश

काश प्रिये मेरी धड़कन को
अपने मन से सुन पाती तुम
काश प्रिये गीतों को मेरे
सांसों में अपनी बुन पाती तुम


काश प्रिये तुम मुझसे मुझतक
और मेरे अंतस में रहती
मुझपर बस अधिकार तुम्हारा
काश सदा तुम मुझसे कहती

काश तेरे कोमल हाथो को
हाथो में अपने ले सकता
और अगर ये हो सपनो में
काश और सपने ले सकता

काश कभी तुमसे कह पाता
कितना गहरा प्यार हमारा
एक इबादत तुमसे की है
कभी न होगा प्यार दोबारा

काश प्रिये इस दीवाने को
अपना साथी चुन पाती तुम
काश प्रिये मेरी धड़कन को
अपने मन से सुन पाती तुम

Wednesday, November 5, 2008

तुमसे प्यार करने लगा हूँ मै !

नही मै नही लिख सकता
क्या लिखूं ? कैसे लिखूं ?
अपने ही शब्दों में
आप उलझने लगा हूँ मै
हाँ! तुमसे प्यार करने लगा हूँ मै !

समझ नही आता की कैसे
अपनी सारी भावनाए
शब्दों में ढाल दूँ
और मन के सारे रंग
एक प्रष्ठ पर उतार दूँ...

पर हाँ , आजकल एक
अनजान सा चेहरा
कागज़ पर चितरने लगा हूँ मै
हाँ ! तुमसे प्यार करने लगा हूँ मै !

दिन रात बस यही सोचता हूँ
कि तुम मेरे बारे में
क्या सोचती होगी
या फ़िर ये कि
क्या तुम मेरे बारे में सोचती होगी ?
मन मेरा पर विचार तुम्हारे होते है
झील मेरे अंतस की है और
नीर तुम्हारे प्रेम का
और इसी की थाह को पाने
हाँ ! उतरने लगा हूँ मै!
हाँ ! तुमसे प्यार करने लगा हूँ मै !

जब पहली बार तुम्हे मैंने
कनखनी से हँसते देखा था
तब मुझे लगा शायद ये ज़िन्दगी
ऐसे ही हँसती होगी
और तबसे शायद रोज़
उसी मुसकान की राहे तकता हूँ

तेरी एक झलक को पाने
हाँ! तरसने लगा हूँ मै
हाँ ! तुमसे प्यार करने लगा हूँ मै !

कलम ये मेरी हठ करती है
कहती है न और लिखूंगी
और मेरे शब्दों को शायद
एक प्रेरणा बाँध चुकी है


कहता था न तुमसे
मत तारीफ़ करो तुम इनकी
तुम से तुम तक
शब्द मेरा, संगीत मेरा, गीत मेरे
झंकार मेरी और प्राण मेरे
इन संग ही बहने लगा हूँ मै
हाँ ! तुमसे प्यार करने लगा हूँ मै!

Sunday, October 12, 2008

पन्ने

कई दिनों बाद
आज मै लिखने बैठा हूँ
लगता है किसी ने तरल कर दिया है
मेरे मन की सूखी स्याही को

और अब मेरी खुशियाँ भी
तरल हो चुकी है
मेरी भावनाए मेरी उंगलियों के छोरो से
बह रही है
और सोख ली जाती है
जीवन के कोरे कागज़ पर |


मैंने अधिकार दिया
दूसरो को रंगने का
अपने जीवन के कागज़

और देखो उन्होंने क्या कर दिया-
हर पन्ने पर लाल छींटे है
मेरी इच्छाओ के
कुछ लकीरे भी है जो
भावनाओं के मरने के बाद
आस-पास खीच दी गई....

कई दिनों बाद
आज मै लिखने बैठा हूँ...

Saturday, October 4, 2008

पथिक ओ !

मै कहता हूँ सुन लो
पथिक ओ ! पथिक ओ !
कही चलते चलते
भटक तुम न जाना |

है राहे तुम्हारी
विजय और जाती
कही कंटको में
अटक तुम न जाना
कही चलते चलते
भटक तुम न जाना

न देखा न जाना है
तुमने पथिक ओ
कि इतना सुलभ भी
ये पथ तो नही है

मिले ढेरो पत्थर
चुभे पैर कंकर
बिना चोट के जीत
सम्भव कही है ?

कि ख़ुद को तपाकर
यु सांचे में ढालो
प्रहारों से देखो
चटक तुम न जाना
कही चलते चलते
भटक तुम न जाना ||

Monday, July 21, 2008

एक नया सूरज

घन तिमिर से घिरि
इस नीरस धरा पर
अब नया सूरज उगाना चाहिए

आंधीयों से जूझती एक
प्राण ज्योति
इसको बुझने से
बचाना चाहिए

क्यों तिमिर बाहर
जो अन्दर
रोशनी इतनी सघन है
शीत की लहरें है हिम सी
क्यों ये फिर जलता बदन है |

क्या किरण मेरे ही अन्दर
दबी सी मर जायेगी
चेष्टा इसकी कि मिट जाए तिमिर
मिट जायेगी |

या मेरे अंतर की ज्वाला
देश को झुलसाएगी
जब तलक रोशन ना युग हो
तब तलग तड़पायेगी |

क्रांति को जन्म देने को
न शक्ति चाहिए
क्रांति मांगे समर्पण
देश भक्ति चाहिए

मै नहीं कहता कि तुम
भगवान् को ललकार दो
ना मेरी इच्छा कि सारे
तंत्र को धिक्कार दो |

तार है सूने पड़े सच्चाई के
झंकार दो
एक मानव पल रहा अंतस में है
पुकार दो |

आज तक जो स्वप्न
हम सबके ह्रदय में है पला
उस सपन को आज का
सच बनाना चाहिए

अब नया सूरज उगाना चाहिए ||

Sunday, July 20, 2008

ओ रे नीरे !

ओ रे नीरे !
आज मचल जा कि
अब अंतस में तेरे
भाव की लहरें उठेंगी
स्वप्न के संचार होंगे

और इस नीरस धरा पर
पुष्प हर रंग का खिलेगा

ना थी मूरत
था सनाटा
आज बज जाए मंजीरे
ओ रे नीरे !

स्वप्न की दुनिया का
सच में
आज मन
संचार होगा

आज सोयेगा अँधेरा
प्रेम का उजियार होगा

आज सूखे जलधरो से
भी यहाँ पानी गिरेगा

झूम तू खुशियों में लेकिन
थोडा धीरे
ओ रे नीरे !

पतझरो में झर गया
हर पात वृक्षों से मगर
अब वास आया है वसन्तो का
अभी न शोक कर

कि अब हवाए
शीत की लहरों को अपने संग लिए
फैला रही है दूर तक सुरभि

बदन में
उठ रहे कम्पन है
जैसे ही छुआ इस
वात ने है

एक उत्सव जग में है
और एक मेरे मन में है
एक उत्सव कर रही है
पवन ये
मुझको घेरे
ओ रे नीरे !

मन ही केवल खुश नहीं है
देखो-देखो इन विहग के कलरवो को
आज ये आकाश सारा
नाप देंगे

देखो पातो की विवशता
बन्धनों में बंद है
पर आज फिर भी
चेष्टा उड़ने की है
सो मचलते है
संग हवाओं के |

लुभाते मन को मेरे
ओ रे नीरे !!

Saturday, July 19, 2008

उन्माद

मन मे एक उन्माद है
कर दिखा , कुछ कर दिखा
बज रहे सौ नाद है
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||

स्वप्न ले आंखो मे चल
मन भले ही हो विह्वल
दूरियों को दूर से ही देखकर
तू प्रण ये कर
की, भाग्य भी आये
अगर
और जग से हो तेरा समर
तब वक़्त की जंजीर को तोड़े हुए
आगे तू बढ़ |
और मृत्यु से आँखे मिलकर
दे उसे सच aये बता
कल है मेरा ,कल है मेरा
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||

चाहे ये जग तुझपर हंसा
चाहे खुदा भी फ़िर गया
चाहे तेरी राहो के संबल
बन गए पत्थर , मगर
न हार को स्वीकार कर
मत भाग्य का सतकार कर
निश्चय बना अतल तेरा
और जीत को पुकार दे
ये तन ये मन सारा जीवन
हर एक साँस वार दे
जीत जा , जगती को उसके
सत्य का दर्पण बता
कुछ कर दिखा, कुछ कर दिखा ||

वह कठोर तप तू कर
कि ईश को भी डर लगे
देना पड़े उसको वहि
जो मांग तेरा मन करे
तेरे परिष्रम से स्वयं
ष्रम को पसीना आएगा
तब देखना उस दिन तू सारा
जग विजय हो जायेगा
की पर्वतो को चीरकर
आगे तू बढ़, कुछ कर गुज़र
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||

राहो में चाहे अनगिनत कांटे मिले
पैरो तले
मन में चाहे चुभते हजारो
रक्त की बूँदें गिरे
तब एक दुनिया डूब जाने दे
मगर तू हार ना
कर दे विवश जगती भले
मत हार को स्वीकारना

प्राणो की ज्योति की भले
अंतिम किरण देनी पड़े
देना पड़े तुझको ये जीवन
शर ये मन देना पड़े |

पीछे न हटना एक पग भी
अग्रसर रहना सदा
कुछ कर दिखा, कुछ कर दिखा ||

Sunday, April 20, 2008

तेरी याद

रातो को मैं सपने तेरे
बुनता हूँ
मन ही मन मैं यादे तेरी गुनता हूँ
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ .......

तेरी यादे तेरी बातें
मन के अपने प्यारे नाते
हर साँस मे तेरा नाम बसा
मैं ख़ुद की धड़कन सुनता हूँ

रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ.....

बैठ मैं तारे गिनता रहता
ख़ुद ही हस्त ख़ुद से कहता
दर्द भरे इस जीवन से
अब मैं खुशिया चुनता हूँ


रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ......

चाँद भी अब हस्ता है मुझपे
पागल मुझको कहता है
क्या खैर चकोर दीवाने की
जो उसकी धुन मे रहता है

रैना मैं दीवानों जैसे
प्यार मे सर को धुनता हूँ....
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ......

क्या ख़बर शमा को आशिक की
क्या ख़बर उसे दीवाने की
क्या लेना उसको ख़ाक हुई
हस्ती से एक परवाने की

मैं हस्ती अप्नी ख़ाक किए
तेरे प्रेम के कांटे चुनता हूँ

रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ.........