Tuesday, January 5, 2010

निरोत्तमा

सांवला शरीर, धूल से सने उलझे हुए काले बाल, मैली-कुचैली फ्राक, नाक में एक नथ ,गले में एक रंग बिरंगी माला और हाथ में एक झाड़ू। नंगे पैर ट्रेन के कम्पार्टमेंट में घूमती इस १०-१२ साल की लड़की को आपने भी कई बार देखा होगा। ये लड़की तरह-तरह की जातियों, बोलियों और क्षेत्रो में पायी जाती है। भारतीय रेल की जहां-जहां पहुँच है ये लड़की वहां-वहां होती है।
कभी ये ट्रेन क कम्पार्टमेंट में झाड़ू लगाकर यात्रियों से पैसे मांगती है और कभी छोटे-छोटे खिलौने, बिस्किट आदि बेचकर पैसो का जुगाड़ करती है। और कभी कुछ करने का मन न होने पर भीख मांग लिया करती है, क्योकि इसे पता है कि घड़ी में १२:३० बजते ही पेट खाना मांगेगा, ये सोचे बिना कि नीरू के पास पैसे है या नहीं। निरोत्तमा, ये नाम इसके चाचा ने रखा था। वही चाचा जिसे ये हर रात अपनी कमाई हवाले करती है। निरोत्तमा, इस नाम का अर्थ तो मुझे पता नहीं पर शायद उत्तम शब्द
थोड़ा आश्चर्यजनक था। उत्तम तो वो थी और सुन्दर भी, जब मैंने उसे दरवाज़े के किनारे बैठकर गुज़रते पेड़ो को निहारते देखा था। मैंने सोचा, जिस दिन मै इसका भाग्य बदल पाया, खुद को भाग्यशाली समझूँगा।