ऐ हवा, चल ज़रा
मेरा आंसू एक सुखा दे
पथराई सी आँखों में प्रेम के
दीपक सात बुझा दे
वो सात दिए जो सात दिनों में
तूने मन में जलाए
वो सात दिए जो सात क्षणों में
तूने प्रिये भुलाए
वो दीपक तेरी यादो के
जो सात रंग के सपने थे
जो पल मेहमान थे जीवन में
वो पल काहे के अपने थे
पर हाँ आँखे मूंदू तो अब भी
तुम्ही दिखाई देती हो
जब चलूँ अकेला उन सड़को पर
तुम्ही सुनाई देती हो...
चलने दे मुझे, है काम बड़े
जो राह में मुझको करने है
तेरी याद भी मेरा क्या लेगी
बस दो नैना ही भरने है...
पर फिर भी याद रहेंगे मुझको..... तेरे नैना, तेरे नैना, तेरे नैना रे....
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Wednesday, September 15, 2010
Tuesday, December 9, 2008
इंतज़ार
मै तब भी इंतज़ार करता था
मै अब भी इंतज़ार करता हूं
कभी आसमान को देखता हूं
कभी पास खडी इमारतो को
कभी फ़ोन कान के पास रख
अभिनय किया करता हूं
फिर बार-बार सबसे नज़रे बचाकर
तुम्हारे घर को देखता हूं
कि अब
शायद अब तुम बाहर आओ
मै रोज़ आता हूं
सिर्फ़ तुम्हे देखने
मै तब भी इंतज़ार करता था
मै अब भी इंतज़ार करता हूं
मै अब भी इंतज़ार करता हूं
कभी आसमान को देखता हूं
कभी पास खडी इमारतो को
कभी फ़ोन कान के पास रख
अभिनय किया करता हूं
फिर बार-बार सबसे नज़रे बचाकर
तुम्हारे घर को देखता हूं
कि अब
शायद अब तुम बाहर आओ
मै रोज़ आता हूं
सिर्फ़ तुम्हे देखने
मै तब भी इंतज़ार करता था
मै अब भी इंतज़ार करता हूं
Sunday, November 23, 2008
काश
काश प्रिये मेरी धड़कन को
अपने मन से सुन पाती तुम
काश प्रिये गीतों को मेरे
सांसों में अपनी बुन पाती तुम
काश प्रिये तुम मुझसे मुझतक
और मेरे अंतस में रहती
मुझपर बस अधिकार तुम्हारा
काश सदा तुम मुझसे कहती
काश तेरे कोमल हाथो को
हाथो में अपने ले सकता
और अगर ये हो सपनो में
काश और सपने ले सकता
काश कभी तुमसे कह पाता
कितना गहरा प्यार हमारा
एक इबादत तुमसे की है
कभी न होगा प्यार दोबारा
काश प्रिये इस दीवाने को
अपना साथी चुन पाती तुम
काश प्रिये मेरी धड़कन को
अपने मन से सुन पाती तुम
अपने मन से सुन पाती तुम
काश प्रिये गीतों को मेरे
सांसों में अपनी बुन पाती तुम
काश प्रिये तुम मुझसे मुझतक
और मेरे अंतस में रहती
मुझपर बस अधिकार तुम्हारा
काश सदा तुम मुझसे कहती
काश तेरे कोमल हाथो को
हाथो में अपने ले सकता
और अगर ये हो सपनो में
काश और सपने ले सकता
काश कभी तुमसे कह पाता
कितना गहरा प्यार हमारा
एक इबादत तुमसे की है
कभी न होगा प्यार दोबारा
काश प्रिये इस दीवाने को
अपना साथी चुन पाती तुम
काश प्रिये मेरी धड़कन को
अपने मन से सुन पाती तुम
Sunday, October 12, 2008
पन्ने
कई दिनों बाद
आज मै लिखने बैठा हूँ
लगता है किसी ने तरल कर दिया है
मेरे मन की सूखी स्याही को
और अब मेरी खुशियाँ भी
तरल हो चुकी है
मेरी भावनाए मेरी उंगलियों के छोरो से
बह रही है
और सोख ली जाती है
जीवन के कोरे कागज़ पर |
मैंने अधिकार दिया
दूसरो को रंगने का
अपने जीवन के कागज़
और देखो उन्होंने क्या कर दिया-
हर पन्ने पर लाल छींटे है
मेरी इच्छाओ के
कुछ लकीरे भी है जो
भावनाओं के मरने के बाद
आस-पास खीच दी गई....
कई दिनों बाद
आज मै लिखने बैठा हूँ...
आज मै लिखने बैठा हूँ
लगता है किसी ने तरल कर दिया है
मेरे मन की सूखी स्याही को
और अब मेरी खुशियाँ भी
तरल हो चुकी है
मेरी भावनाए मेरी उंगलियों के छोरो से
बह रही है
और सोख ली जाती है
जीवन के कोरे कागज़ पर |
मैंने अधिकार दिया
दूसरो को रंगने का
अपने जीवन के कागज़
और देखो उन्होंने क्या कर दिया-
हर पन्ने पर लाल छींटे है
मेरी इच्छाओ के
कुछ लकीरे भी है जो
भावनाओं के मरने के बाद
आस-पास खीच दी गई....
कई दिनों बाद
आज मै लिखने बैठा हूँ...
Saturday, October 4, 2008
पथिक ओ !
मै कहता हूँ सुन लो
पथिक ओ ! पथिक ओ !
कही चलते चलते
भटक तुम न जाना |
है राहे तुम्हारी
विजय और जाती
कही कंटको में
अटक तुम न जाना
कही चलते चलते
भटक तुम न जाना
न देखा न जाना है
तुमने पथिक ओ
कि इतना सुलभ भी
ये पथ तो नही है
मिले ढेरो पत्थर
चुभे पैर कंकर
बिना चोट के जीत
सम्भव कही है ?
कि ख़ुद को तपाकर
यु सांचे में ढालो
प्रहारों से देखो
चटक तुम न जाना
कही चलते चलते
भटक तुम न जाना ||
पथिक ओ ! पथिक ओ !
कही चलते चलते
भटक तुम न जाना |
है राहे तुम्हारी
विजय और जाती
कही कंटको में
अटक तुम न जाना
कही चलते चलते
भटक तुम न जाना
न देखा न जाना है
तुमने पथिक ओ
कि इतना सुलभ भी
ये पथ तो नही है
मिले ढेरो पत्थर
चुभे पैर कंकर
बिना चोट के जीत
सम्भव कही है ?
कि ख़ुद को तपाकर
यु सांचे में ढालो
प्रहारों से देखो
चटक तुम न जाना
कही चलते चलते
भटक तुम न जाना ||
Monday, July 21, 2008
एक नया सूरज
घन तिमिर से घिरि
इस नीरस धरा पर
अब नया सूरज उगाना चाहिए
आंधीयों से जूझती एक
प्राण ज्योति
इसको बुझने से
बचाना चाहिए
क्यों तिमिर बाहर
जो अन्दर
रोशनी इतनी सघन है
शीत की लहरें है हिम सी
क्यों ये फिर जलता बदन है |
क्या किरण मेरे ही अन्दर
दबी सी मर जायेगी
चेष्टा इसकी कि मिट जाए तिमिर
मिट जायेगी |
या मेरे अंतर की ज्वाला
देश को झुलसाएगी
जब तलक रोशन ना युग हो
तब तलग तड़पायेगी |
क्रांति को जन्म देने को
न शक्ति चाहिए
क्रांति मांगे समर्पण
देश भक्ति चाहिए
मै नहीं कहता कि तुम
भगवान् को ललकार दो
ना मेरी इच्छा कि सारे
तंत्र को धिक्कार दो |
तार है सूने पड़े सच्चाई के
झंकार दो
एक मानव पल रहा अंतस में है
पुकार दो |
आज तक जो स्वप्न
हम सबके ह्रदय में है पला
उस सपन को आज का
सच बनाना चाहिए
अब नया सूरज उगाना चाहिए ||
इस नीरस धरा पर
अब नया सूरज उगाना चाहिए
आंधीयों से जूझती एक
प्राण ज्योति
इसको बुझने से
बचाना चाहिए
क्यों तिमिर बाहर
जो अन्दर
रोशनी इतनी सघन है
शीत की लहरें है हिम सी
क्यों ये फिर जलता बदन है |
क्या किरण मेरे ही अन्दर
दबी सी मर जायेगी
चेष्टा इसकी कि मिट जाए तिमिर
मिट जायेगी |
या मेरे अंतर की ज्वाला
देश को झुलसाएगी
जब तलक रोशन ना युग हो
तब तलग तड़पायेगी |
क्रांति को जन्म देने को
न शक्ति चाहिए
क्रांति मांगे समर्पण
देश भक्ति चाहिए
मै नहीं कहता कि तुम
भगवान् को ललकार दो
ना मेरी इच्छा कि सारे
तंत्र को धिक्कार दो |
तार है सूने पड़े सच्चाई के
झंकार दो
एक मानव पल रहा अंतस में है
पुकार दो |
आज तक जो स्वप्न
हम सबके ह्रदय में है पला
उस सपन को आज का
सच बनाना चाहिए
अब नया सूरज उगाना चाहिए ||
Sunday, July 20, 2008
ओ रे नीरे !
ओ रे नीरे !
आज मचल जा कि
अब अंतस में तेरे
भाव की लहरें उठेंगी
स्वप्न के संचार होंगे
और इस नीरस धरा पर
पुष्प हर रंग का खिलेगा
ना थी मूरत
था सनाटा
आज बज जाए मंजीरे
ओ रे नीरे !
स्वप्न की दुनिया का
सच में
आज मन
संचार होगा
आज सोयेगा अँधेरा
प्रेम का उजियार होगा
आज सूखे जलधरो से
भी यहाँ पानी गिरेगा
झूम तू खुशियों में लेकिन
थोडा धीरे
ओ रे नीरे !
पतझरो में झर गया
हर पात वृक्षों से मगर
अब वास आया है वसन्तो का
अभी न शोक कर
कि अब हवाए
शीत की लहरों को अपने संग लिए
फैला रही है दूर तक सुरभि
बदन में
उठ रहे कम्पन है
जैसे ही छुआ इस
वात ने है
एक उत्सव जग में है
और एक मेरे मन में है
एक उत्सव कर रही है
पवन ये
मुझको घेरे
ओ रे नीरे !
मन ही केवल खुश नहीं है
देखो-देखो इन विहग के कलरवो को
आज ये आकाश सारा
नाप देंगे
देखो पातो की विवशता
बन्धनों में बंद है
पर आज फिर भी
चेष्टा उड़ने की है
सो मचलते है
संग हवाओं के |
लुभाते मन को मेरे
ओ रे नीरे !!
आज मचल जा कि
अब अंतस में तेरे
भाव की लहरें उठेंगी
स्वप्न के संचार होंगे
और इस नीरस धरा पर
पुष्प हर रंग का खिलेगा
ना थी मूरत
था सनाटा
आज बज जाए मंजीरे
ओ रे नीरे !
स्वप्न की दुनिया का
सच में
आज मन
संचार होगा
आज सोयेगा अँधेरा
प्रेम का उजियार होगा
आज सूखे जलधरो से
भी यहाँ पानी गिरेगा
झूम तू खुशियों में लेकिन
थोडा धीरे
ओ रे नीरे !
पतझरो में झर गया
हर पात वृक्षों से मगर
अब वास आया है वसन्तो का
अभी न शोक कर
कि अब हवाए
शीत की लहरों को अपने संग लिए
फैला रही है दूर तक सुरभि
बदन में
उठ रहे कम्पन है
जैसे ही छुआ इस
वात ने है
एक उत्सव जग में है
और एक मेरे मन में है
एक उत्सव कर रही है
पवन ये
मुझको घेरे
ओ रे नीरे !
मन ही केवल खुश नहीं है
देखो-देखो इन विहग के कलरवो को
आज ये आकाश सारा
नाप देंगे
देखो पातो की विवशता
बन्धनों में बंद है
पर आज फिर भी
चेष्टा उड़ने की है
सो मचलते है
संग हवाओं के |
लुभाते मन को मेरे
ओ रे नीरे !!
Saturday, July 19, 2008
उन्माद
मन मे एक उन्माद है
कर दिखा , कुछ कर दिखा
बज रहे सौ नाद है
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||
स्वप्न ले आंखो मे चल
मन भले ही हो विह्वल
दूरियों को दूर से ही देखकर
तू प्रण ये कर
की, भाग्य भी आये
अगर
और जग से हो तेरा समर
तब वक़्त की जंजीर को तोड़े हुए
आगे तू बढ़ |
और मृत्यु से आँखे मिलकर
दे उसे सच aये बता
कल है मेरा ,कल है मेरा
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||
चाहे ये जग तुझपर हंसा
चाहे खुदा भी फ़िर गया
चाहे तेरी राहो के संबल
बन गए पत्थर , मगर
न हार को स्वीकार कर
मत भाग्य का सतकार कर
निश्चय बना अतल तेरा
और जीत को पुकार दे
ये तन ये मन सारा जीवन
हर एक साँस वार दे
जीत जा , जगती को उसके
सत्य का दर्पण बता
कुछ कर दिखा, कुछ कर दिखा ||
वह कठोर तप तू कर
कि ईश को भी डर लगे
देना पड़े उसको वहि
जो मांग तेरा मन करे
तेरे परिष्रम से स्वयं
ष्रम को पसीना आएगा
तब देखना उस दिन तू सारा
जग विजय हो जायेगा
की पर्वतो को चीरकर
आगे तू बढ़, कुछ कर गुज़र
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||
राहो में चाहे अनगिनत कांटे मिले
पैरो तले
मन में चाहे चुभते हजारो
रक्त की बूँदें गिरे
तब एक दुनिया डूब जाने दे
मगर तू हार ना
कर दे विवश जगती भले
मत हार को स्वीकारना
प्राणो की ज्योति की भले
अंतिम किरण देनी पड़े
देना पड़े तुझको ये जीवन
शर ये मन देना पड़े |
पीछे न हटना एक पग भी
अग्रसर रहना सदा
कुछ कर दिखा, कुछ कर दिखा ||
कर दिखा , कुछ कर दिखा
बज रहे सौ नाद है
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||
स्वप्न ले आंखो मे चल
मन भले ही हो विह्वल
दूरियों को दूर से ही देखकर
तू प्रण ये कर
की, भाग्य भी आये
अगर
और जग से हो तेरा समर
तब वक़्त की जंजीर को तोड़े हुए
आगे तू बढ़ |
और मृत्यु से आँखे मिलकर
दे उसे सच aये बता
कल है मेरा ,कल है मेरा
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||
चाहे ये जग तुझपर हंसा
चाहे खुदा भी फ़िर गया
चाहे तेरी राहो के संबल
बन गए पत्थर , मगर
न हार को स्वीकार कर
मत भाग्य का सतकार कर
निश्चय बना अतल तेरा
और जीत को पुकार दे
ये तन ये मन सारा जीवन
हर एक साँस वार दे
जीत जा , जगती को उसके
सत्य का दर्पण बता
कुछ कर दिखा, कुछ कर दिखा ||
वह कठोर तप तू कर
कि ईश को भी डर लगे
देना पड़े उसको वहि
जो मांग तेरा मन करे
तेरे परिष्रम से स्वयं
ष्रम को पसीना आएगा
तब देखना उस दिन तू सारा
जग विजय हो जायेगा
की पर्वतो को चीरकर
आगे तू बढ़, कुछ कर गुज़र
कुछ कर दिखा , कुछ कर दिखा ||
राहो में चाहे अनगिनत कांटे मिले
पैरो तले
मन में चाहे चुभते हजारो
रक्त की बूँदें गिरे
तब एक दुनिया डूब जाने दे
मगर तू हार ना
कर दे विवश जगती भले
मत हार को स्वीकारना
प्राणो की ज्योति की भले
अंतिम किरण देनी पड़े
देना पड़े तुझको ये जीवन
शर ये मन देना पड़े |
पीछे न हटना एक पग भी
अग्रसर रहना सदा
कुछ कर दिखा, कुछ कर दिखा ||
Sunday, April 20, 2008
तेरी याद
रातो को मैं सपने तेरे
बुनता हूँ
मन ही मन मैं यादे तेरी गुनता हूँ
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ .......
तेरी यादे तेरी बातें
मन के अपने प्यारे नाते
हर साँस मे तेरा नाम बसा
मैं ख़ुद की धड़कन सुनता हूँ
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ.....
बैठ मैं तारे गिनता रहता
ख़ुद ही हस्त ख़ुद से कहता
दर्द भरे इस जीवन से
अब मैं खुशिया चुनता हूँ
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ......
चाँद भी अब हस्ता है मुझपे
पागल मुझको कहता है
क्या खैर चकोर दीवाने की
जो उसकी धुन मे रहता है
रैना मैं दीवानों जैसे
प्यार मे सर को धुनता हूँ....
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ......
क्या ख़बर शमा को आशिक की
क्या ख़बर उसे दीवाने की
क्या लेना उसको ख़ाक हुई
हस्ती से एक परवाने की
मैं हस्ती अप्नी ख़ाक किए
तेरे प्रेम के कांटे चुनता हूँ
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ.........
बुनता हूँ
मन ही मन मैं यादे तेरी गुनता हूँ
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ .......
तेरी यादे तेरी बातें
मन के अपने प्यारे नाते
हर साँस मे तेरा नाम बसा
मैं ख़ुद की धड़कन सुनता हूँ
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ.....
बैठ मैं तारे गिनता रहता
ख़ुद ही हस्त ख़ुद से कहता
दर्द भरे इस जीवन से
अब मैं खुशिया चुनता हूँ
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ......
चाँद भी अब हस्ता है मुझपे
पागल मुझको कहता है
क्या खैर चकोर दीवाने की
जो उसकी धुन मे रहता है
रैना मैं दीवानों जैसे
प्यार मे सर को धुनता हूँ....
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ......
क्या ख़बर शमा को आशिक की
क्या ख़बर उसे दीवाने की
क्या लेना उसको ख़ाक हुई
हस्ती से एक परवाने की
मैं हस्ती अप्नी ख़ाक किए
तेरे प्रेम के कांटे चुनता हूँ
रातो को मैं सपने तेरे बुनता हूँ.........
Wednesday, October 17, 2007
अन्तिम इच्छा
प्रियतम, अब मरने वाला हूँ
कुछ बाते तो अब कर लो
बुझती आंखें ,रूकती साँसे
लेकिन बाहों में भर लो |
ह्रदय के स्पंद गिरे जब
मन को ऐसे बहलाना
एक हथेली सिर रख लेना
एक हथेली सहलाना |
जैसे-जैसे टूटे साँसे
तेरी साँसों की गूँज सुनू
फिर एक मिलन का स्वप्न बुनू ,और
नव-जीवन की आस करूं|
रुन्धती जाये आवाज़ मेरी
तब कानो में वे शब्द कहो
मरने में मुझको कष्ट ना हो
ऐसा संगीत निशब्द कहो |
अधरों को अधरों से अन्तिम
कुछ बाते अब कह लेने दो
सारा जीवन तरसा हूँ मैं
अब भावो को बह लेने दो |
जब गिर जाऊं चलते-चलते
तो झुकना मेरे सहारे को
माना मैं उठ नही पाऊंगा
पर रुकना अंत इशारे को |
जब मूंदू मैं अपनी आँखे
तेरे चेहरे को देख मरूँ
फिर से देखू इस चेहरे को
मन मे अन्तिम एक आस करूं |
कुछ बाते तो अब कर लो
बुझती आंखें ,रूकती साँसे
लेकिन बाहों में भर लो |
ह्रदय के स्पंद गिरे जब
मन को ऐसे बहलाना
एक हथेली सिर रख लेना
एक हथेली सहलाना |
जैसे-जैसे टूटे साँसे
तेरी साँसों की गूँज सुनू
फिर एक मिलन का स्वप्न बुनू ,और
नव-जीवन की आस करूं|
रुन्धती जाये आवाज़ मेरी
तब कानो में वे शब्द कहो
मरने में मुझको कष्ट ना हो
ऐसा संगीत निशब्द कहो |
अधरों को अधरों से अन्तिम
कुछ बाते अब कह लेने दो
सारा जीवन तरसा हूँ मैं
अब भावो को बह लेने दो |
जब गिर जाऊं चलते-चलते
तो झुकना मेरे सहारे को
माना मैं उठ नही पाऊंगा
पर रुकना अंत इशारे को |
जब मूंदू मैं अपनी आँखे
तेरे चेहरे को देख मरूँ
फिर से देखू इस चेहरे को
मन मे अन्तिम एक आस करूं |
Monday, October 15, 2007
मैं मूक कवि
मैं मूक कवि हूँ ,मूक कवि
मैं कह नही सकता भावो को
इसलिये उकेरता रहता हूँ
कागज़ पर डगमग नावों को ||
मैं सुन सकता हूँ ,सुनता हूँ
तरह-तरह की बातो को
कितने पंछी के कलरव को
आंधी मे डालो-पातो को||
चुपचाप मैं बस सुनता रहता
जो जगती मुझको सुनाती है
कभी,वीणा की मधुर तान
कभी,घृणित शोर बन जाती है||
जितने है मुँह उतनी बाते
एक अवसर आने की देरी
और अवसर आते ही देखो
कैसे बजती है रणभेरी ||
एक प्रतिस्पर्धा,समर,युद्ध
छिड़ जाता है लोगो मैं तब
कोई कितना शोर मचाता है
कोई कितनी बात बनाता है||
कैसी है ये दुनिया तेरी
जीते नही जीने देती है
करती रुख अँधेरी गलियाँ
पीते नही पीने देती है ||
दो ह्रदयों का मेल अगर हो
हानि बता जग तेरी क्या है?
क्यों बांटे है तू ह्रदयों को
बांटे ये बहुतेरी क्या है?
चटखारे लेकर पर-पीड़ा
सुनी -सुनाई जाती है
जिन बातो को ढकना हो
वाही बात बताई जाती है||
"कैसा जीवन जीते है वे
जिनको वाणी-वरदान मिल
उनसे तो अच्छा मैं गूंगा
जिसको गूंगापन दान मिला "
||आशीष ||
Wednesday, September 26, 2007
मित्रता
धूप में किसी पेड की
छाया को कहते मित्रता,
ईश के हाथो बनी
काया को कहते मित्रता ||
ग़र निराशा आ भी जाए
मित्रता अवलम्ब है
बोझ ले विश्वास पर
यह वह अटल स्तम्भ है ||
स्वार्थ को जाने नही
वह भावना है मित्रता
मित्र के हर स्वप्न की
एक कामना है मित्रता ||
मरीचिका में सत्य का
दर्पन दिखा दे मित्रता
निश्वास में निर्वात में
कम्पन जग दे मित्रता ||
एक अजब संबंध है
एक धीरता है मित्रता,
हास्य से सींची हुई
गम्भीरता है मित्रता ||
ग़र कदम थकते कभी तो
मित्रता तो पास है,
जीत का विश्वास भर दे
एक अनूठी आस है ||
हर ख़ुशी के ओष्ठ पर
जो गीत वह है मित्रता,
प्रेम के सुर में ढला
संगीत ऐसी मित्रता ||
सांस जो रूकती कभी तो
दम अगर साहस भरे ,
हार की उम्मीद हो और
सच हो सपनो से परे,
हाथ थामे जीत का
विश्वास देगी मित्रता
अपने ही सामर्थ्य तक
हर श्वास देगी मित्रता ||
ग़र कही इतना अनोखा
प्रेम मिल जाये कभी,
भूल कर भी खो ना देना
साकार ऐसी मित्रता ||
छाया को कहते मित्रता,
ईश के हाथो बनी
काया को कहते मित्रता ||
ग़र निराशा आ भी जाए
मित्रता अवलम्ब है
बोझ ले विश्वास पर
यह वह अटल स्तम्भ है ||
स्वार्थ को जाने नही
वह भावना है मित्रता
मित्र के हर स्वप्न की
एक कामना है मित्रता ||
मरीचिका में सत्य का
दर्पन दिखा दे मित्रता
निश्वास में निर्वात में
कम्पन जग दे मित्रता ||
एक अजब संबंध है
एक धीरता है मित्रता,
हास्य से सींची हुई
गम्भीरता है मित्रता ||
ग़र कदम थकते कभी तो
मित्रता तो पास है,
जीत का विश्वास भर दे
एक अनूठी आस है ||
हर ख़ुशी के ओष्ठ पर
जो गीत वह है मित्रता,
प्रेम के सुर में ढला
संगीत ऐसी मित्रता ||
सांस जो रूकती कभी तो
दम अगर साहस भरे ,
हार की उम्मीद हो और
सच हो सपनो से परे,
हाथ थामे जीत का
विश्वास देगी मित्रता
अपने ही सामर्थ्य तक
हर श्वास देगी मित्रता ||
ग़र कही इतना अनोखा
प्रेम मिल जाये कभी,
भूल कर भी खो ना देना
साकार ऐसी मित्रता ||
Friday, September 14, 2007
प्यास
इंतज़ार अब भी करता हूँ
मन की आस तुम आओगी
प्रेम हमेशा तुम से रहेगा
है एक प्यास तुम आओगी ........
मन की आस तुम आओगी
प्रेम हमेशा तुम से रहेगा
है एक प्यास तुम आओगी ........
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