Wednesday, September 15, 2010

तेरे सात दिए

हवा, चल ज़रा
मेरा आंसू एक सुखा दे
पथराई सी आँखों में प्रेम के
दीपक सात बुझा दे

वो सात दिए जो सात दिनों में
तूने मन में जलाए
वो सात दिए जो सात क्षणों में
तूने प्रिये भुलाए

वो दीपक तेरी यादो के
जो सात रंग के सपने थे
जो पल मेहमान थे जीवन में
वो पल काहे के अपने थे

पर हाँ आँखे मूंदू तो अब भी
तुम्ही दिखाई देती हो
जब चलूँ अकेला उन सड़को पर
तुम्ही सुनाई देती हो...

चलने दे मुझे, है काम बड़े
जो राह में मुझको करने है
तेरी याद भी मेरा क्या लेगी
बस दो नैना ही भरने है...

पर फिर भी याद रहेंगे मुझको..... तेरे नैना, तेरे नैना, तेरे नैना रे....



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