Monday, February 14, 2011

तन झरता है क्षण क्षण कण कण




तन झरता है
क्षण क्षण कण कण
मन फूले है उल्लास में
मै पूछू अपनी वसुधा से
क्या रखा तन की प्यास में...

तन एक छलावा
मिट जाने वाला सपनो का पुतला है
तू सपनो को सच मान सुखो का पीछा करता निकला है..
मत भूल कि राही राह नहीं ये तो घनश्याम कि माया है..
पञ्च-इन्द्र के बादल ने तुझसे तेरा स्वरुप छिपाया है...

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